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Sunday, April 20, 2014

bharat vikas parishad

भारत विकास परिषद ------

भावनाओं का सम्मान, जिसकी लक्ष्य बन गया,
राष्ट्र का निर्माण जिसकी, रग-रग में बस गया,
तम मिटाने की ठान ली और ज्ञानदीप जल गया।

विकसित मेरा देश हो, संस्कृति-सभ्यता आधार हो,
काम-क्रोध, मद-लोभ, इनका ना कोई प्रचार हो,
संस्कारों की जमीं पर, विश्व गुरु सपना साकार हो।

परिंदों को खुला गगन, वसुधैव कुटुंब सार हो,
रिक्तता का बोध ना हो, अध्यात्म आधार हो।
षष्ट ऋतू का देश भारत, विश्व में गुलजार हो,
दर्प हो विनम्रता पर, सेवा -कर्म पतवार हो।



डॉ अ कीर्तिवर्धन
साहित्यकार
विद्यालक्ष्मी निकेतन,
53 महालक्ष्मी एन्क्लेव
मुज़फ्फरनगर-251001 (उत्तर-प्रदेश )
08265821800 

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