भारत विकास परिषद ------
भावनाओं का सम्मान, जिसकी लक्ष्य बन गया,
राष्ट्र का निर्माण जिसकी, रग-रग में बस गया,
तम मिटाने की ठान ली और ज्ञानदीप जल गया।
विकसित मेरा देश हो, सपना जब से बन गया
काम-क्रोध, मद-लोभ, अध्यात्म सार बन गया
संस्कारों की जमीं पर, विश्व गुरु भारत बन गया।
परिंदों को खुला गगन, बच्चों को बचपन मिल गया,
रिक्तता का बोध ना हो, कर्म ही आधार बन गया
षष्ट ऋतू का देश भारत, विश्व सिरमौर बन गया
दर्प हो विनम्रता पर, मानवता आधार बन गया।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
साहित्यकार
विद्यालक्ष्मी निकेतन,
53 महालक्ष्मी एन्क्लेव
मुज़फ्फरनगर-251001 (उत्तर-प्रदेश )
08265821800
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