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Friday, September 26, 2014

koi poot kapoot banaa to sab pooton ko dosh na do

मित्रों आज एक रचना पढ़ी, उसकी 4 पंक्तियाँ इस प्रकार थी -
माँ तो माँ है आज भी लेकिन,
बस एक पूत सपूत नहीं है।
बोई, उगाई, तोड़ी फेंकी
बाबुल क्या यमदूत नहीं है।

पता नहीं कवि का क्या भाव रहा होगा मगर मुझे बाद की दो पंक्तियाँ अच्छी नहीं लगी और मैंने कहा--

कोई पूत कपूत बना तो सब पूतों को दोष न दो,
मात-पिता की सेवा करते, सपूतों को तो दोष न दो।
बेटी नहीं है सब्जी-भाजी, उगाई, तोड़ी और फिर रांधी,
बेटी हित सर्वस्व लुटाता, बाबुल को यूँ  दोष न दो।
माँ भी होती आज कुमाता, आधुनिकता जिसको भरमाता,
अर्द्ध नग्न बनकर जो घूमे, बस बेटों को दोष न दो।

दोस्तों आपकी क्या राय है ?

डॉ अ कीर्तिवर्धन

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