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Tuesday, January 13, 2015

satyanjali- dr s n chauhan

2/15                                                                                दिनांक 13 जनवरी 2015

                                सत्य से साक्षात्कार कराती “सत्यान्जलि”

                        जब भाव व्याकुल होते हैं और दिल मचलने लगता है,
                        हृदय औ’ मस्तिष्क का मिलन, कविता का उदभव होता है।
                        नहीं बाँध सकता नियम में, भावों की अनुभूति को,
                        दर्द जहाँ का देखा जब भी, कविता का प्रस्फुटन होता है।  

जी हाँ, “सत्यान्जली” को पढ़ा तो यही लगा कि सारे जहाँ का दर्द कविता के रूप में पन्नों पर उत्तर आया है।  समाज को अनुभव कर पुस्तक के कैनवास पर उतारना जितना महत्वपूर्ण है उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है किसी विज्ञान व तकनीक से जुड़े व्यक्ति द्वारा अपने विषय से इतर दृष्टि से सृजन करना।  कविता क्या है, उसकी परिभाषा, नियम व बंधन क्या हैं, न तो मैं इसे महत्वपूर्ण मानता हूँ और न ही यह मेरी चर्चा का विषय है। मेरी  दृष्टि में भावों का प्रस्तुतिकरण सबसे प्रमुख है और यदि यह सरल- सहज भाषा में हो तो सोने पर सुहागा। डॉ एस एन चौहान न तो साहित्यकार हैं और न ही मूलतः कवि। 31 दिसम्बर 2012 की रात्रि में देखे गए स्वपन ने आपके लिए नववर्ष 2013 को नयी आशाओं व उपलब्धियों का वर्ष बना दिया और इंजीनियरिंग -तकनीकि का व्यक्ति कविता के क्षेत्र में भी अपनी पहचान बनाने में सफल रहा।
“सत्यान्जली”  डॉ चौहान की प्रथम कृति है, जिसका शुभारम्भ अपने इष्ट के वन्दन से किया गया है और यही वन्दन -समर्पण सत्यान्जलि की सत्यता का मूल बिंदु है ---
                              सुमिरन प्रभु का करूँ, धरके मन में ध्यान,
                              कारज पुरण हो सकें, रहे तुम्हारी आन।
                              मुझे पूर्ण विश्वास है, आये न कोई कान,
                              हृदय में मेरे विराजें, सदा वीर हनुमान।
सत्यान्जलि में 108 कविताओं का समावेश किया गया है, यानी माला के 108 मनके। हमारे शास्त्रों में 108 = 1+8 =9 का बहुत महत्त्व माना गया है। सृष्टि के चारों युगों का योग 4320000 वर्ष == 9 ही आता है, ऋग्वेद में कुल ४३२०००० अक्षर, भारतीय वर्ष में 360 दिन आदि का योग भी 9 ही है। इस प्रकार सत्यान्जलि में संग्रहित कविताओं के योग का 9 होना भी इनकी सत्यता के इर्द-गिर्द होने की पुष्टि करता है।
धर्म, अध्यात्म, सियासत, गरीबी, स्त्री, पुरुष, सुख-दुःख, प्यार-नफरत, भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक समस्या,भ्रष्टाचार, प्रकृति, राष्ट्र चिंतन आदि लगभग सभी विषयों को सत्यान्जली के कैनवास पर डॉ चौहान ने सीधे सपाट शब्दों में उकेरा है। डॉ चौहान अपने व्यक्तिगत जीवन में भी बहुत सहज- सरल हैं और वही बिम्ब  कविताओं में भी दृष्टिगोचर होता है।
“सत्यान्जलि” को स्वर्गीया श्रीमती मुकेश बाला चौहान (अपनी धर्मपत्नी ) को समर्पित किया है जिन्हे काल ने समय पूर्व ही अपने पास बुला लिया।  यही समर्पण उनके अथक प्रेम का साक्षी है।
मैं डॉ एस एन चौहान जी को हार्दिक साधुवाद देता हूँ और कामना करता हूँ कि उनकी लेखनी निरंतर चलते हुए समाज में फैले तिमिर को मिटाने के लिए दीप सदृश बनी रहेगी।  
                      हार्दिक शुभकामनाएं।


डॉ अ कीर्तिवर्धन
विद्यालक्ष्मी निकेतन
53- महालक्ष्मी एन्क्लेव
मुज़फ्फरनगर -251001

08265821800

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