Pages

Followers

Sunday, May 10, 2015

maan

माँ-
समंदर सी गहराई जिसके मन में है,
ज्ञान के मोती जिसके धन में है,
अथाह जल भरा जैसे सागर में,
मानवता हिलोरे ले रही जीवन में है।
खारापन समंदर का नहीं कुछ काम आएगा,
प्यासा मर रहा मानव प्यास कैसे बुझाएगा,
भटकोगे समंदर में तो मंजिल कैसे पाओगे,
शरण माँ की आ जाओ, किनारा भी मिल जायेगा।
समंदर फैंकता बाहर, जैसे गन्दगी अवशेष को,
माँ बनाती मन को निर्मल, दूर कर निज दोष को,
विशालता सागर सी जीवन  में वह भरे,
करे जीवन समर्पित उत्थान में संतान को।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
8265821800

No comments:

Post a Comment